मजदूर मजबूर होकर भी भरते हैं सपनों में नूर
मजदूर नहीं देवतुल्य
(मजदूर दिवस: एक पवित्र विश्राम)।
मजदूर दिवस के जगह
कार्य को आतुर दिवस हो ।
भले विश्राम हो एक दिन
सदा कार्य आलिंगन को विवश हो ।
यह पावन पवित्र दिन
कार्यों का बोध कराता है।
हर पल नवसृजन का
नव शोध बताता है ।
मजदूर कह कर हम जिन्हें
मन से दूर करते हैं ।
वही मजबूर होकर भी
हमारे सपनों में नूर भरते हैं ।
कहीं न कहीं प्रत्येक व्यक्ति
जिनकी कार्य ही है अभिव्यक्ति ।
भूल जाते हैं क्योंकि सपनों में चूर हैं
यथार्थ के आईने में स्वयं भी एक मजदूर है।
हम गर्व करें स्वयं पर
कुछ न कुछ काम करते हैं ।
परिवेश देश के लिए
प्रतिदिन ध्यान धरते हैं।
निकम्मों की तरह हम पर
कहीं कोई दाग नहीं है ।
वे लोग दीमक जैसे हैं
जिन्हें कार्य के प्रति अनुराग नहीं है।
नमन सुमन अर्पित उन्हें जो बेमिशाल हैं।
रोटी जुटी मिले वसन छत भी बहाल है ।
कृतज्ञ रहे सदा ये तन- मन
इन महामानव के लिये ।
मजदूर नहीं देवतुल्य हैं
जो जनमानस हेतु जिये ।
✍️ संध्या रानी
सहायक शिक्षिका
देवघर।