मातृदिवस पर मातृवंदना
व्याधिमुक्त संसार
व्याधिमुक्त संसार करूँ क्यों हे स्वार्थी
नर.
पागल होकर आज जोड़ता है दोनों
कर.
कल तक तो तुमने मेरा अस्तित्व
नकारा.
फिर क्यों तुमने आज राम का नाम
पुकारा.
सुख में जब तुमको मेरी कुछ याद न
आई.
दुख में क्यों तेरी फ़रियाद सुनें
रघुराई..
राजाराम यादव
साहित्य सेवा मंच के अध्यक्ष तथा
भूतपूर्व प्रशासनिक एवं हिंदी अधिकारी, एचसीएल
2. आज छात्र ही तोड़ रहे, डंडा
यह पीढ़ी तो पिस गई दो
पाटन के बीच.
मिला कमीना तब गुरू,
मिले छात्र अब नीच.
तोड़ा करते थे तब तन पर डंडा गुरुवर.
आज छात्र ही तोड़ रहे, डंडा गुरुवर पर.
राजाराम यादव
साहित्य सेवा मंच के अध्यक्ष तथा
भूतपूर्व प्रशासनिक एवं हिंदी अधिकारी, एचसीएल
3. अपने पास बुलाने का फल भुगतो भगवन
एक आत्मा देह त्यागकर पहुंची प्रभु के पास.
दोस्त-मित्र व बंधु-बांधव साथी, सभी उदास.
सबने किया नमन सबने बोला रो-रोकर.
हे मृतात्मा सदा रहो सुख से अम्बर पर.
पर मैं लगा सोचने तेरा क्या होगा भगवान.
तेरे भी नाकों में दम कर देगा यह शैतान.
जीवन के भी साथ और जीवन के भी पश्चात।
जहां रहेगा, वहीं करेगा, यह भीषण उत्पात।।
जहाँ जहाँ यह रहा त्राहि कर उठे सभी जन.
अब अपनी करनी का फल खुद भुगतो भगवन.
(नोट: अपने पास बुलाने का फल भुगतो भगवन)
राजाराम यादव
साहित्य सेवा मंच के अध्यक्ष तथा
भूतपूर्व प्रशासनिक एवं हिंदी अधिकारी, एचसीएल
4. मुश्किल हो जाता मजबूरी भी बतलाना
जान-माल-मर्यादा पर जब संकट आ जाता है।
चक्रव्यूह से किसी भांति नर निकल नहीं पाता है।।
स्वजनों और परिजनों पर जब लटकी हो तलवार।
अहो वीर से वीर व्यक्ति भी हो जाता लाचार।।
दुश्मन की शर्तों को करना पड़ता है स्वीकार।
दृढ़ता और आत्मबल जलकर हो जाते हैं छार।।
नरपिशाच, बर्बर-गंवार जाहिल, जालिम, शैतान।
मजबूरी में उसे बताना पड़ता व्यक्ति महान।।
देवतुल्य जो सदा सर्वदा अंतर में बसता है।
मजबूरी में उस महान को गरियाना पड़ता है।।
मजबूरी में करना पड़ता दल-मजहब-परिवर्तन।।
खुशी दिखानी पड़ती ऊपर
मन करता है क्रंदन।।
मुश्किल हो जाता मजबूरी भी बतलाना।
आप इसे कहते गद्दारी, थूक चाटना।।
राजाराम यादव
साहित्य सेवा मंच के अध्यक्ष तथा
भूतपूर्व प्रशासनिक एवं हिंदी अधिकारी, एचसीएल
5.कुछ-कुछ नादानी
माना बड़के भइया ने की है कुछ-कुछ नादानी।
कुछ-कुछ जुल्म किये हैं मुझपर, कुछ-कुछ की मनमानी।
तो क्या बड़के भइया को देने को समुचित दंड।
आज विभीषण बन जाऊं मैं, बन जाऊं जयचंद?
बन जाऊं जयचंद, मिला लूं गोरी से कर?
दुश्मन से कटवा डालूं, अपने स्वजनों के ही सर?
करवाऊं क्या बहन-बेटियों की मर्यादा ह्रास?
मुझे नहीं दुहारना है पीड़ादायक इतिहास।
मुझे पता है जयचंदों का होता है क्या हाल!
नहीं छोड़ती जयचंदों को गोरी की करवाल।
राजाराम यादव
साहित्य सेवा मंच के अध्यक्ष तथा
भूतपूर्व प्रशासनिक एवं हिंदी अधिकारी, एचसीएल
6. रोज रोज डराया न करो
कन्फर्म है,रिटर्न टिकट तेरा भी,
इस बात की यूं याद दिलाया न करो।
निश्चित है विदाई मेरी ओ यार मेरे,
मालूम है, पर रोज बताया न करो।
जाना है जिस दिवस, चला ही जाऊंगा,
पर यार रोज रोज डराया न करो।।
राजाराम यादव
साहित्य सेवा मंच के अध्यक्ष तथा
भूतपूर्व प्रशासनिक एवं हिंदी अधिकारी, एचसीएल
7, द्रव्य जरूरी जीवनभर
पैसा कर की मैल, मूल है यह अशांति का।
किस मूरख ने दिया हमें उपदेश भ्रांति का।
पैसे के बिन कहां शांति है मुझे दिखा दो।
पैसे के बिन क्षण भर जीकर ही दिखला दो।।
पैसे के बिन दिखला दो तुम क्षण भर लेकर श्वास।
पैसे बिन दिखला दो पाकर मोक्ष और सन्यास।।
पैसे बिन दिखला दो पाकर, ज्ञान, वेद, वेदांत।
द्रव्य जरूरी जीवनभर, जीवन के भी उपरांत.
राजाराम यादव
साहित्य सेवा मंच के अध्यक्ष तथा
भूतपूर्व प्रशासनिक एवं हिंदी अधिकारी, एचसीएल
8. पाखंडी सदा सोचते मानव का कल्याण
मार्क्सवादियों सा इस भू पर दिखा न करुणासागर।
दीन दलित पीड़ित के हित हरदम रहते हैं तत्पर।
किसी तरह जो मानव अपना पेट पालता।
इनको वह पूंजीपति व बुर्जुआ दीखता।
जिस मानव का किसी तरह से चलता है संसार।
उसे लूटकर दीन गरीबों का करते उद्धार।।
लेकिन एक चवन्नी का भी स्वयं न करते दान।
ये पाखंडी सदा सोचते मानव का कल्याण।।
राजाराम यादव
साहित्य सेवा मंच के अध्यक्ष तथा
भूतपूर्व प्रशासनिक एवं हिंदी अधिकारी, एचसीएल
9. मातृदिवस पर मातृवंदना
मातृदिवस पर मातृवंदना की देखी जब बाढ़।
एक पोस्ट मैं भी दे मारूं, जाग उठी तब चाह।।
मैं ही क्यों इस शो- शो में पीछे रह जाऊं।
लाइक व कॉमेंट कमा, में भी इतराऊं।।
फिर सोचा क्यों जले घाव पर नमक लगाना।
एक वर्ष में एक बार क्या प्यार जताना!(RRY 22)
राजाराम यादव
साहित्य सेवा मंच के अध्यक्ष तथा
भूतपूर्व प्रशासनिक एवं हिंदी अधिकारी, एचसीएल