रूस के केंद्रीय बैंक की विदेश में रखी संपत्ति फ्रीज
पश्चिमी देशों ने रूस पर अब तक का सबसे कड़ा प्रतिबंध लगाते हुए रूस के केंद्रीय बैंक की विदेश में रखी संपत्ति फ्रीज कर दी है। रूस के पास 630 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। इसमें से 300 अरब डॉलर अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व और यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) में रखे हैं। इस रकम तक पहुंच रोके जाने से रूस को कड़ा झटका लगेगा। पश्चिमी देशों ने एक और अहम पाबंदी यह लगाई है कि उन्होंने रूस के बैंकों को स्विफ्ट नेटवर्क से बाहर कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय भुगतान में इस नेटवर्क की अहम भूमिका है। स्विफ्ट यानी सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनैंशल टेलिकम्युनिकेशंस एक इंटरनैशनल मेसेजिंग सिस्टम है। इसके जरिये बैंक एक दूसरे से सुरक्षित तरीके से संवाद करते हैं और सुरक्षित ढंग से रकम एक देश से दूसरे देश भेजी जाती है। 11,000 अंतरराष्ट्रीय बैंक इसके सदस्य हैं।
पाबंदियों का असर
स्विफ्ट से बाहर किए जाने का मतलब है कि कई रूसी बैंक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था से बाहर हो जाएंगे। इससे उनका वैश्विक स्तर पर कामकाज करना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में रूस आयात के लिए भुगतान नहीं कर पाएगा। ना ही, सामान्य रास्ते से निर्यात के लिए कोई और उसे पैसा दे पाएगा। गौर करने की बात यह है कि रूसी अर्थव्यवस्था काफी हद तक तेल निर्यात पर आश्रित है। उसके जीडीपी में इसका योगदान 15-20 प्रतिशत है। वहीं, जीडीपी में कुल निर्यात का योगदान 30 प्रतिशत के करीब है। इसके प्रभावित होने से उसकी अर्थव्यवस्था को भारी चोट पहुंचेगी।
2014 में जब रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया को अलग किया था, तब भी उस पर आर्थिक पाबंदियां लगी थीं। उस वक्त रूस के पूर्व वित्त मंत्री ने कहा था कि प्रतिबंधों से रूस की जीडीपी में 5 प्रतिशत की सिकुड़न हो सकती है। हम ईरान की मिसाल से भी स्विफ्ट से रूसी बैंकों को हटाए जाने के असर का अनुमान लगा सकते हैं। ईरान को जब स्विफ्ट से बाहर किया गया था तो तेल निर्यात से होने वाली आमदनी में 50 प्रतिशत और कुल निर्यात में 30 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
यूक्रेन युद्ध का असर दुनिया के दूसरे देशों के साथ भारत पर भी होगा, भले ही रूस और यूक्रेन भारत के बड़े व्यापारिक साझेदार नहीं हैं। रूस पर पाबंदी लगने से वैश्विक स्तर पर तेल की आपूर्ति पर असर हुआ है। आने वाले वक्त में कच्चा तेल इस वजह से और महंगा हो सकता है। फिलहाल भारत की यह सबसे बड़ी चिंता है। इससे भारत को आयात के लिए अधिक डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। लिहाजा चालू खाता घाटा बढ़ेगा क्योंकि भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत कच्चा तेल दूसरे देशों से खरीदता है। कच्चे तेल के दाम में बढ़ोतरी के कारण पेट्रोल-डीजल महंगा हुआ तो इससे देश में अन्य सामानों की कीमत भी बढ़ सकती है। यह भारतीय इकॉनमी के लिए बुरी खबर होगी, जहां पहले ही खुदरा महंगाई दर 6 प्रतिशत से अधिक है।
स्विफ्ट से रूसी बैंकों को बाहर किए जाने का भी असर भारत पर पड़ेगा। दोनों देशों के बीच 11.9 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार होता है। 2021 में भारत ने रूस को 3.3 अरब डॉलर का निर्यात किया था। इसमें सबसे अधिक योगदान दवाओं का था। भारत ने पिछले साल रूस से 8.6 अरब डॉलर का आयात किया, जिसमें कच्चा तेल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स, कोयला, खाद, सोना, कीमती धातु और दूसरी धातुएं शामिल थीं। भारत के हथियार सौदों पर भी इसका असर हो सकता है। रूस भारत का सबसे बड़ा हथियार सप्लायर है। भारत के कुल हथियार आयात में उसका योगदान आधे से भी अधिक है। लेकिन क्या इन पाबंदियों से बचते हुए भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार जारी रह सकता है?
रूस पर 2014 में भी आर्थिक प्रतिबंध लगे थे। उसके बाद भारत और रूस ने अपनी मुद्राओं में व्यापार का रास्ता निकाला था। अभी भी द्विपक्षीय व्यापार में एक हिस्से के लिए भारत रुपये में भुगतान करता है, न कि डॉलर में। आगे भी भारत के पास इन पाबंदियों से बचने के कुछ रास्ते होंगे। भारत और रूस द्विपक्षीय व्यापार के लिए अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं का इस्तेमाल कर सकते हैं। या इसके लिए भारत उस रास्ते का इस्तेमाल कर सकता है, जिसका उसने ईरान के साथ व्यापार के लिए किया था। भारत और ईरान के बीच व्यापार एक पब्लिक सेक्टर बैंक में खोले गए खाते के जरिये होता था, जिसमें रुपये में रकम जमा कराई जाती थी।
भारत के विकल्प
वैसे, 2014 की पाबंदियों के बाद स्विफ्ट की तरह रूस ने एसपीएफएस सिस्टम डिवेलप किया है। द्विपक्षीय व्यापार जारी रखने के लिए कुछ भारतीय बैंक इससे जुड़ सकते हैं। इसके अलावा, ट्रेड के लिए दोनों देशों के केंद्रीय बैंकों की ओर से जारी की जाने वाली नई डिजिटल करंसी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन यहां दो बातों को लेकर सावधान रहना होगा। पहला, इनमें से किसी भी विकल्प को आजमाया नहीं गया है और ना ही उन्हें परखा गया है। दूसरा, ये सिस्टम पूरी तरह तैयार नहीं हैं। इसलिए इनसे अनिश्चितता जुड़ी है।
सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध को लेकर भारत का रुख अभी तक न्यूट्रल रहा है। इसलिए अगर वह रूस से व्यापार के लिए वैश्विक पाबंदियों की अनदेखी करता है तो इससे पश्चिम के सहयोगी देशों के बीच गलत संदेश जाएगा। उन्हें लगेगा कि भारत रूस का पक्ष ले रहा है। इससे अमेरिका और यूरोप भारत के खिलाफ कड़े कदम उठा सकते हैं। भारत ऐसा जोखिम शायद ही उठाना चाहेगा।