चुनाव से बड़ी लड़ाई है, पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की रक्षा करना
सर्च खबर (सुधीर कुमार रंजन) : धार्मिक अफीम की लत जब योजाना बद्ध तरीके से एक बार पंथनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणराज्य के लोगों में लगा दी जाती है,तब उसकी नशे की ख़ुमारी उतारना इतना आसान नहीं होता, जितना लोग समझते हैं।।वाजदफा तो उसके नशे की चपेट में पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की ताना-बाना रेशा रेशा हो जाति है। लोग विवेक शून्य हो जाते हैं ना तो अपनी भला-बुरा की समझ उनमें रह पाती है और ना ही देश समाज की।वह तो नशे में सिर्फ़ और सिर्फ़ वही करते चले जाते हैं,जिनका उन्हें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष निर्देश या संकेत उन्हें अफीम खिलाने वालों समुहों, संगठनों या नेतृत्वों द्वारा मिलती है। आज़ हमारे देश की राजनीतिक धरातल पर कुछ ऐसी ही परिस्थितियां सचेत रूप से निर्मित की गई है। देश की बहुसंख्यक समाज की एक बहुत बड़ी आबादी आज़ उसकी चपेट में फंस दिमाग से पैदल हो चुका है। क्या शिक्षित या अशिक्षित सबके सब अनपढ़ों के माफिक़ गोबर हो चुके हैं। ऐसे लोगों के दिमाग़ में यह भूसा भर दिया गया है कि अपने देश की पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की परिकल्पना आपकी धार्मिक हितों में सबसे बड़ी बाधक है। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हमारी स्वतंत्रता संग्राम के महान शहीदों और महानायकों के बरअक्स उन्हें खड़ा कर देश की पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के खिलाफ उनके हृदय में नफ़रत की ज्वाला भर दी गई है। विभिन्न अवसरों पर देश की संविधान को जलाने, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और संविधान निर्माता भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा तोड़ने की अनेकों शहरों में घटित विभिन्न घटनाएं उसी नफ़रती ज्वालामुखी की रह-रहकर फटने की स्पष्ट निशानी है।
बहरहाल, हमारे देश की पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य की दृष्टि से देश की राजनीतिक जमीन ना केवल देश की संविधान, लोकतंत्र और समाज के लिए नासूर बन गया है बल्कि वह आज़ सांझी संस्कृति और विरासत के लिए भी बड़ी चुनौती बन गई है। लिहाज़ा, धार्मिक अफीमची समुह या संगठन जो आज़ हमारे देश की राजनितिक सत्ता पर घनिभूत रूप से काबिज़ हैं, उन्हें राजसत्ता से बेदखल करना उतना आसान नहीं है,जितना की लोग सोच रहे हैं। आज़ उनके पास नाना प्रकार की संगठन है, मीडिया है,पावर है, सत्ता है और बहुसंख्यक समाज की एक बड़े वर्ग समुह की नशे में धूत एक बड़ी फोजो़ की ज़ख़ीरा है, जिसे खत्म करने के लिए पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य के समर्थक समुहों के पास ना तो उस प्रकार से संगठानिक क्षमता है और ना ही वैचारिक प्रतिबद्धता।खोखली पंथनिरपेक्षता के बलबूते उन्हें परास्त करना टेढ़ी खीर है। कुछ लोग समझते हैं कि यूपी चुनाव या अन्य राज्यों की चुनाव में उन्हें पराजित कर देश की राजनीतिक जमीन पर मिल रही वर्तमान चुनौतियों से मुकाबला संभव है,तो यह उनकी गलतफहमियां हैं, क्योंकि उनके द्वारा फैलाई गई नफ़रत और बोई गई ज़हर का असर आज़ देश की जर्रे-जर्रे में साफ़ देखी और एहसास की जा सकती है।इसका असर देश की तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं, समाज और राजनीतिक जमीन पर लंबे समय तक लोगों को चुभते रहेगी,भले आप उसे राजसत्ता से बेदखल करने में सफल हो जायं। पर उसका क्या करेंगे जो आज़ धार्मिक नशे में अफीमची बन,आज़ उन्मादी हो दिन-रात नफ़रत में अपना खून जलाते रहते हैं ?